अर्जुन के शंख का नाम देवदत्त इसलिए पड़ा क्योंकि यह उन्हें देवताओं द्वारा प्रदान किया गया था। “देवदत्त” का शाब्दिक अर्थ है “देवताओं द्वारा दिया गया” (देव = देवता, दत्त = दिया गया)। महाभारत के अनुसार, जब अर्जुन स्वर्ग गए थे ताकि इंद्र और अन्य देवताओं से दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त कर सकें, तब उन्हें यह शंख उपहार के रूप में मिला। यह शंख न केवल उनकी दिव्य कृपा का प्रतीक था, बल्कि युद्ध में इसका उपयोग सहयोगियों का उत्साह बढ़ाने और शत्रुओं में भय उत्पन्न करने के लिए भी किया जाता था।
प्रदीयमानं देवैस्तं देवदत्तं जलोद्भवम्।
प्रत्यगृह्णां जयायैनं स्तूयमानस्तदाऽमरैः ।।
स शङ्खी कवची वाणी प्रगृहीतशरासनः।
दानवालयमत्युग्रं प्रयातोस्मि युयुत्सया ।।
यह वही शंख है, जिसे मैंने अपनी विजय के लिए ग्रहण किया था। इसे देवताओं ने मुझे प्रदान किया, इसलिए इसका नाम देवदत्त है। शंख लेकर, देवताओं के मुख से अपनी स्तुति सुनते हुए, मैं कवच, बाण और धनुष से सुसज्जित होकर युद्ध की इच्छा के साथ अत्यंत भयंकर दानवों के नगर की ओर प्रस्थान किया।
महाभारत में संदर्भ:
